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स्वास्थ्य

आज सभी लोग छोटी बड़ी समस्याओं से प्रभावित है | अधिकांश लोगो को यह बात पता भी नहीं चलती कि उनको क्या समस्या है , वो अधिकतर समय मुख्य समस्या की तरफ ध्यान न दे कर इधर उधर अपने लक्षणों ( अपनी skin discoloration , लगातार कमज़ोरी , कब्ज़ी रहना आदि ) का सीधे तौर पर इलाज करवाते रहते है ( सीधे तौर से मतलब ,अगर कब्ज़ी है तो laxatives , स्किन के लिए क्रीम ऑइंटमेंट आदि का प्रयोग ) , जब की अब समय है की क्षण भर रुको सोचो और सही परामर्श का अनुसरण करे |

आज आपको मैं डिजिटल युग और सोशल मीडिया के जरिये रास्ता देखने में ही सहायता कर सकता हूँ , अपने स्वास्थ्य का लक्ष्य पाने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ के पास जाना पड़ेगा लेकिन हम अपना उपचार भी यही शुरू कर देते है |


एक बुढ़िया अम्मा से मेरी मुलकात जब हुई जब मैं किसी पहाड़ी क्षेत्र में घूमते घूमते एक घर के आगे पहुंच गया जो की उस पथ पर एक मात्र घर था , मुझे देख अम्मा मुस्कुराई और बोली तुम एक रास्ता छोड़ कर गलत रस्ते पर आ गए हो , मेरा माथा ठनका कि मैं अकेला ही आ गया या बाकि के लोग भी साथ में है , फिर उन अम्मा ने मुझे बिना देरी किये अपने पीछे आने को कहा और एक छोटे से दुर्गम रास्ते से मुझे मेरे मुख्य मार्ग पर पंहुचा दिया | अब दूर से मेरी मित्र मण्डली दिख रही थी जो की काफी नीचे थी , अब मुझे सांस आई | मेने अम्मा की फुर्ती और पहाड़ पर चढ़ाई को उनका सालो अनुभव समझ कर नजरअंदाज कर दिया और उनकी उम्र पूछी तो उन्होंने कहा कि जब चौरा चौरी आंदोलन हुआ था उसी साल मेरा जन्म हुआ था , मेरे नाना का घर गोरखपुर के पास था | आंदोलन के चंद महीनो बाद पहली बरसात के समय जन्म हुआ था | मेरी उम्र करीब 27 वर्ष और अम्मा 91 वर्ष की | बाद में पता चला अक्सर पहाड़ी इलाको में चिकित्सा के अभाव के कारण लोग अब इतने स्वस्थ नहीं है , बेटी अपने घर रहती है और बेटा फौज में नौकरी करता और उसके बाद बच्चो के साथ गोरखपुर रहता है , बड़ा पौता और उसकी पत्नी निचे के गांव में रहते है वही पर उनकी जीविका के साधन है , मैं मेरे पति का घर छोड़ कर कही नहीं जा सकती हूँ | उनके स्वास्थ्य का राज खोलत हुए वो बोलती है कि उन्होंने जीवन का बहुत सालो पहले तेल और मसालों का सेवन बंद कर दिया था , अब गाय का दूध घी मठ्ठा और बकरी के दूध के अलावा अपना उगाया हुआ अनाज खाती है | जंगल में मिलने वाली कुछ औषधियां है जिनको वह साल में एक बार खून में जमा गंदगी और पाचन ग्रंथि ( लिवर ) को सवस्थ रखने के लिए खाती है | उन्होंने बताया वह 15 साल अपने बेटे के साथ पंजाब रही थी तब उनके पेट में गाँठ ( लीवर के पास ) हो गई थी उन्होंने अपने बेटे से कहा मुझे ऑपरेशन नहीं करवाना अपने पति के घर पर ही अपने प्राण देने है , और आज २० साल हो गए वो स्वस्थ हो चुकी है |


सारा सार ये है कि सिर्फ प्रकृति की गोद में रहने से ही नहीं अपितु प्रकृति के नियमो का पालन और हमारे शरीर की प्रकृति को कुदरत की प्रकृति के अनुरूप चलने देने से ही हम बीमारियों के जाल से बच पाएंगे |

कब्ज़ को बिमारी का प्रथम कारण माना गया है और लीवर को पाचन तंत्र का मुख्य अंग | अगर आज हम स्वस्थ लीवर के लिए जागरूक हो जायेंगे तो अनेकों छोटी बढ़ी और गंभीर बीमारियों से बच सकते है |



क्या करे -

आज के इस आर्थिक युग में हर चीज़ लाभ के लिए बेचीं जा रही है और अधिक लाभ की चाहत में जहर से चीज़े (खाद्य पदार्थ ) बनाई जा रही है , जल ,वायु धरती आकाश सब प्रदूषित हो रहे है ऐसे में प्रकृति को बिना बचाय हम अगर स्वस्थ रहना चाहे तो हो नहीं सकता है | इन सबके बावजूद भी अगर हम वनस्पति और प्राकृतिक भोजन पर निर्भर हो जाए तो तो स्वस्थ जीवन के लक्ष्य को काफी हद तक प्राप्त कर सकते है |

रोजाना घूमना शारीरिक परिश्रम के साथ उचित मात्रा में पोषक आहार लेना आवश्यक है , हरी साग सब्ज़िया ताज़े फल का सेवन अधिक आवश्यक है | जल का सेवन अधिक से अधिक करे , बस ध्यान रखे जल पीने योग्य हो |

स्वस्थ रहने के लिए बहुत अधिक पूंजी की जरुरत नहीं है बस थोड़ी अधिक समझदारी और मेहनत की जरुरत है और साथ ही छोटी छोटी समस्याओ के लिए बड़ी बड़ी दवाओं की जगह ,सही परामर्श और जांचो का सहारा ले पहले निदान ( diagnosis ) किया जाए | फिर आवश्यकतानुसार दवा पद्धति का चयन किया जाए होम्योपैथिक आयुर्वेदिक और एलोपैथिक |

लेकिन इन सबके साथ प्राकृतिक चिकित्सा और योग को कभी नहीं भूलना चाहिए , आज के समय में पूर्ण रूप से आप प्राकृतिक चिकित्सा और योग से स्वस्थ नहीं हो सकते लेकिन इनके बिना भी स्वस्थ होने का लक्ष्य अधूरा जान पड़ता है |




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